वाबी-साबी (अपने अपूर्ण होने का विवेक)



जीवन में पहली बार मैंने जब वाबी-साबी दर्शन के बारे में जाना तो मेरी उत्सुकता और बढ़ गई इस दर्शन की गहराइयों में जाने की, मेरी यह खोज मुझे पुस्तकालय में ले गई जहां गौतम बुद्ध के द्वारा दिया गया यह दर्शन, जापानी संस्कृति ने संजोए रखा

वाबी-साबी को अगर परिभाषित किया जाए तो इसका मतलब होता है कि  "संपूर्णता नामक कोई चीज इस दुनिया में अस्तित्व नहीं रखती हैयह संसार अपूर्णताओं से भरा हुआ है गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में कहा है कि यह अस्तित्व भव: संसार है (Becoming World). जो हर क्षण बन रहा है और मिट रहा है

प्रकृति के इस नियम को जब हम समझ लेते है, तो हमारे जीवन से एक बड़ा अंधेरा हट जाता है जिसमें हमने अपना पूरा जीवन संपूर्णता नामक चीज़ को प्राप्त करने में लगा दिया है

एक क्षण हमें रुक कर हमे यह सोचना चाहिए कि जब कुछ पूर्ण हो ही नहीं सकता तो हम किसी दौड़ में लगे हुए हैं

जब हम अपने जीवन को दृष्टांत के रूप में देखते हैं तो हमें पता चलता है कि सारा जीवन केवल एक निरर्थक दौड़ में निकल गया और अंततः हमें कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ, हाथ खाली के खाली रह गए

 

जब वाबी-साबी दर्शन को हम और गहराइयों से देखते हैं तो हम पाते हैं कि अच्छे से अच्छा और बेहतर से बेहतर और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बनने की चाह में हमने अपना सारा जीवन निकाल दिया और जीवन की इस अनमोलता को खो दिया

इस दर्शन ने मेरे जीवन में अस्थिरता को मिटाकर, जीवन में स्थिरता लाने का मार्ग बताया


वाबी-साबी दर्शन की अंतिम शिक्षा

सत्य तो यही है कि तुम जो हो पर्याप्त हो वह पूर्णतया हो


 

विरेंद्र चौहान

 

 

 

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